कुछ तो तरस किया कीजिए
बेबजह शिकवा ना किया कीजिए
कब तलक हम यूँ ही गिरते रहें
कभी तो सहारा दिया कीजिए
शोंक नही हैं हमे , यूँ तडफने का
कभी तो परवाह किया कीजिए
जमाना क्या कहेगा मेरे बारे में
कभी तो लिहाज किया कीजिए
कभी तो मान लो अपने दिल की बात
इतना भी जुल्म ना ख़ुद पर किया कीजिए
बेचैन तुम भी हो मेरी तरह
कभी तो मान लिया कीजिए
इक हद होती हैं हर बात की , बाखुदा
इतने बहाने ना किया कीजिए
इश्क करते हो , फ़िर परदा क्यों
कभी तो इजहार किया कीजिए
इतना चुप रहना भी ठीक नही
कभी तो कुछ कहा कीजिये
आईने से पूछते हो, अपने बारे में
अजी , ख़ुद पे तो एतबार किया कीजिए
© शिव कुमार "साहिल" ©
2 टिप्पणियां:
really touching my heart...
4m ghazal
very true yar,,,,,
how u write all ths???
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