बहुत बदनाम हैं मोहब्बत, तेरे शहर में
ख़ुद के काबिल न छोड़ा हमे , तेरे शहर ने
कंही तस्वीरे जले, कंही रिश्ते
कितने होते हैं हादसे , तेरे शहर में
हर मकान पर ताले हैं दीवारों में दरारें
कितने वीरान हैं घर , तेरे शहर में
दिल की बात फ़कत आईने से करी
हर जुबान पे चर्चा हैं लेकिन , तेरे शहर में
ये भी करता हैं असर रफ्ता- रफ्ता
कितना मिलावटी मिले जहर , तेरे शहर में
अब तो ठिकाना हैं किसी ओर नगर में अपना
सोच भटकती हैं अब भी , तेरे शहर में
तू ही अन्जान हैं , साहिल-ऐ-हश्र से जालिम
हर शख्स बाकिफ हैं मगर , तेरे शहर में
© शिव कुमार "साहिल" ©
1 टिप्पणी:
दिल की बात फ़कत आईने से करी
हर जुबान पे चर्चा हैं लेकिन , तेरे शहर में
बड़ी खूबसूरत गज़ल लगी..आभार
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