दिल

मेरे दिल की जगह कोई खिलौना रख दिया जाए ,
वो दिल से खेलते रहते हैं , दर्द होता है "

रविवार, 6 सितंबर 2009

तेरे शहर में

बहुत बदनाम हैं मोहब्बत, तेरे शहर में
ख़ुद के काबिल न छोड़ा हमे , तेरे शहर ने

कंही तस्वीरे जले, कंही रिश्ते
कितने होते हैं हादसे , तेरे शहर में

हर मकान पर ताले हैं दीवारों में दरारें
कितने वीरान हैं घर , तेरे शहर में

दिल की बात फ़कत आईने से करी
हर जुबान पे चर्चा हैं लेकिन , तेरे शहर में

ये भी करता हैं असर रफ्ता- रफ्ता
कितना मिलावटी मिले जहर , तेरे शहर में

अब तो ठिकाना हैं किसी ओर नगर में अपना
सोच भटकती हैं अब भी , तेरे शहर में

तू ही अन्जान हैं , साहिल-ऐ-हश्र से जालिम
हर शख्स बाकिफ हैं मगर , तेरे शहर में

© शिव कुमार "साहिल" ©

1 टिप्पणी:

अपूर्व ने कहा…

दिल की बात फ़कत आईने से करी
हर जुबान पे चर्चा हैं लेकिन , तेरे शहर में

बड़ी खूबसूरत गज़ल लगी..आभार