मोहब्बत में वेसे कोई जरुरत नहीं होती
गर होती हैं तो वो मोहब्बत नहीं होती
केसे भूल जाऊँ तुझे , ऐ भूलने वाले
हमसे अपने ही वजूद से बगावत नहीं होती
किस तरह मुस्कुराह रहे हैं वो भरी महफ़िल में
शुक्र हैं हमारे चहरे पे ऐसी बनाबट तो नहीं होती
हजारों मरते हैं इश्क में रोज , नाजाने केसे-केसे
वो कहते हैं के इश्क में अब सच्ची शहादत नहीं होती
खुदा से भी बेठे हैं हार कर अब ज़माने के बाद "साहिल
ईसी वजह से दयारे - इश्क में शायद इबादत नहीं होती
© शिव कुमार " साहिल" ©
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