दिल

मेरे दिल की जगह कोई खिलौना रख दिया जाए ,
वो दिल से खेलते रहते हैं , दर्द होता है "

गुरुवार, 4 अगस्त 2011

बीमार मोसम

इक अरसे से मोसम
तेज बुखार से पीड़ित हैं
सारा बदन तपतपा रहा हैं उसका
और उसके सेक की वजह से
ग्लेशिअर तक पिघल रहे हैं , खिसक रहे हैं

ये बुखार का ताप और उपर से
जेठ महीने की गर्म हवाएं
ये कारखानों , मोटर वाहनों का
नाजायज गर्म धुँआ
ये मानव बम ये ...ये परमाणु बमों की
आग उगलती मोजुदगी

कई - कई विधवा ओरतों ,
अनगिनत अनाथ बच्चों के
वाष्पीकृत होते हुए गर्म अक्श

ये गर्मी , ये बेरहम गर्मी
ठंडा पानी इक पल में ही उबाल मारने लगता हैं
बर्फ के टुकड़े इक क्षण में ही पिघले जा रहे हैं

ऐसे में भला केसे रखूं
मोसम के माथे पर
ठंडे- ठंडे पानी की
ठंडी-ठंडी पटियां ?


(c) शिव कुमार साहिल (c)

5 टिप्‍पणियां:

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

सुन्दर है. वाज़िब चिन्ता.

नीरज गोस्वामी ने कहा…

शिव भाई आपके ब्लॉग पर आज आना हुआ और सच कहूँ तो यहीं का हो कर रह गया...आप बहुत कमाल का लिखते हैं...आपकी ये नज़्म काबिले दाद है...कबूल करें..

नीरज

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

गहन चिन्ता लिए हुए ..अच्छी नज़्म

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मौसम का गर्म मिजाज़ ... गर्मी और उसके कारण ... विषय को चूने का अंदाज़ बहुत अच्छा लगा ...

बेनामी ने कहा…

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