दिल

मेरे दिल की जगह कोई खिलौना रख दिया जाए ,
वो दिल से खेलते रहते हैं , दर्द होता है "

रविवार, 25 अप्रैल 2010

शिकायतकर्ता !!

आज का दिन भी
बिना कुछ काम किए गवा दिया आपने ,
गर मेहनत की होती
तो पसीने की कोई बूंद गिरी ही होती
कितनी ज़िम्मेदारी का काम
सपुर्द किया गया है आपको
और आप हो के लापरवाह होते जा रहे हो ,
दिन- प्रतिदिन
अपना धुंधला सा चश्मा उतार कर फेंक दो
या फिर इस पर लगी धूल पोंछ कर देखो ,
देखो , जमीन के होंठ केसे फटें पड़ें है
पानी की कमी से
पानी तो जीवन है
और
उसकी प्यास से मोत तक हो जाती है
मगर आप कभी प्यासे रहे नहीं होगे
बचपन से देख रहा हूँ
आप
एक ही नौकरी में लगे हो
और वो भी पानी डोने की
फिर प्यास का तो सवाल ही नही
जन कल्याण के लिए
पानी का विभाग है आपके पास
और आप हो के बूंद - बूंद को तरसाते हो
शुरू - शुरू में तो बड़े पावंद थे ,
बड़े ईमानदार थे , बड़ा जोश था
अपने काम के प्रति
और अब ....
इतनी
लापरवाही , इतना आलस्यपन
कई- कई दिनों तक गेर- हाज़िर रहते हो
अपनी मर्ज़ी से आते हो ,
और
फिर उभाईयाँ लेते हुए
सुस्ताते रहते हो दिन भर
पर अब बहुत हुआ
आपकी
शिकायत करनी पड़ेगी
आला अधिकारीयों से !

जी, जरुर कीजिए
मैं भी तंग गया हूँ
अब इस विभाग से
पहले- पहल तो सब ठीक था
सब आसान था
पर अब यह असंतुलन तो देखिये
मेरी विवशता तो देखिये
कई - कई दिनों तक
भटकता रहता हूँ मैं दर दर,
ये नदियाँ , तालाब , ये झरने तक
प्यासे बेठे है ,
कहीं उधार में भी , पानी मिल नही रहा है
मेरा तो पसीना तक सोंख लेती है
यह प्यासी हवायें
पानी की कमी से
इक नई किस्म की बीमारी हो गई है मुझे
हमारे यहाँ तो मुद्रा का चलन भी नहीं हैं
वरना कम से कम अपने लिए तो
एक-आध पानी की बोतल खरीद ही लेता
आपके बाजार से

मुफ्त बांटता था मैं पानी
और आप लोगो ने कारोबार चला रखा हैं
बूंद -बूंद तक बेचते हो आप लोग

आप लोगो की वजह से ,
बीमार पड़ा हैं पूरा प्राक्रतिक चक्र
कारण आप हो महोदय मेरी इस अवस्था के
मेरी इस रुग्नता के !

मैं तो खुद अस्तिफा देने जा रहा हूँ
अपनी
इस नौकरी से
आप सिर्फ शिकायत कर सकते हो
तो फिर कीजिए शिकायत !!

"इतना कहकर बादल चलता हुआ
शिकायतकर्ता देर तक सोचता रहा

हैं कौन गुनेहगार ? मैं के वो
माथा पकड के खुद से पूछता रहा


शिकायतकर्ता देर तक सोचता रहा !!

©
शिव कुमार साहिल ©





जीवन की परिभाषा !!


माँ ....
कितना पवित्र है यह शब्द
संक्षिप्त , लहजे में आसान ,
हर
ध्वनि में विद्यमान
कितना विस्तृत
है यह शब्द
जिसकी मधुर ध्वनी ने
हर साज़ , हर आवाज़ को
जिंदगी बख्शी
है ,
और मुझे भी !

हर रिश्ते का आधार ,
जीवन की परिभाषा
है माँ

मात्र
एक शब्द नहीं !!


©शिव कुमार साहिल ©

गुरुवार, 8 अप्रैल 2010

कुछ अपने बारे में !!



उम्र के तेईस पोडे
चढ़ गया हूँ
हर लम्हे के सर पर ,
पाँव रख के धीरे -धीरे ,
मसलते हुए
इक - इक तारीख को ,
जोड़ - जोड़ कर ,
अभी तेईस पोड़ों की ,
इक छोटी सी सीढ़ी बन पाई हैं !

अब कुछ और तारीखों के तिनके
तोड़ कर इक अदृश्य परिंदा ,
मेरे लिए अगला पोडा बनाने में,
झुट गया हैं
क्या मालूम वो बना पायेगा
या फिर मैं यहीं से गिर जाऊंगा ,
उस अँधेरी खाई में ,
जिसके मुहाने तक पहुँचने के लिए
मैं यह सीढ़ी चढ़ रहां हूँ !

क्या पता क्या छिपाए बेठा हैं ,
कम्बखत अगला पल !!


©शिव कुमार साहिल ©