दिल

मेरे दिल की जगह कोई खिलौना रख दिया जाए ,
वो दिल से खेलते रहते हैं , दर्द होता है "

बुधवार, 5 अगस्त 2015

मोनालिसा की तस्वीर

मैने हाथ को कंघी बनाकर 
कभी गेसू सँवारे थे तुम्हारे 
क्या याद है तुम्हे 

याद है वो जेठ की दोपहर 
जब मैं मीलों पैदल चलकर 
इक झलक देखने को आता था तुम्हे 
और वो सर्द बर्फीली रातों का तन्हापन 

उन कागज़ों से भी रंगे लहू 
उड़ गया होगा 
जिन पर दिल के अरमान उतारे थे 
नफ़्ज़े लहू से मैने 
शायद कुछ याद भी हो तुम्हे , पर 

सुना है अब तुम 
पहले सी रही नही हो 
मैं भी तो बदल गया हूँ बिल्कुल 

वादे फिसल गए जुबां से गिर गए कहीं 
कसमें बिछड़ गई बेरहम भीड़ में ,

खेर ,
क्या करती हो अब तुम 
मैं तो माजी की तहरीरें लिखता हूँ अब 
कभी हंसती सी , कभी उदास सी लगती हैं तहरीरें 
मोनालिसा की तस्वीर की तरह ।