दिल

मेरे दिल की जगह कोई खिलौना रख दिया जाए ,
वो दिल से खेलते रहते हैं , दर्द होता है "

मंगलवार, 3 नवंबर 2009

दर्द की आग !!


दर्द की आग हैं शहर में चारों तरफ
कोई जल रहा हैं कोई जला रहा हैं

मेरे माजी का सहारा था मुझको
वो भी डूबने के लिए जा रहा हैं

इन दिनों शोर-शराबे हैं, बुतखानो में
खुदा बनके इक खुदा पश्ता रहा हैं

वो भी हो गया शायद अपने दर्द से वाकिफ
जो देखने पर ही इतना मुस्कुरा रहा हैं

जब ख़ुद ही हो वजह अपनी बरबादियों की
फ़िर क्यों किस्मत से गिला जता रहा हैं

जिसको पहचाने न कोई शहर में 'साहिल'
वो ही चोराहे पे सबका पता बता रहा हैं


© शिव कुमार 'साहिल' ©

इक खुदकुशी !!


रिश्तों के किसी सूखे पेड़ से
गिरते गए , टूटते गए
रिश्तों के सूखे फुल कोम्प्लें और पत्तें
बे सहारा माँ बाप कंही
कंही रोते बिलकते लावारिस बच्चे
कदम जलते गए
जिधेर गए
बेशक फूंक-फूंक कर थे रखे
कुछ ऐसा हुआ के वो
रिश्तों का पेड़ टूट ही गया
कुछ ऐसा हुआ के रिश्तों से
कोई रिश्ता सदा के लिए
रूठ ही गया
कुछ ऐसा ही हुआ था उस दिन
कुछ ऐसा ही हुआ होगा
कोई खाव फंदे पर लटक गया
किसी मज़बूरी का मुंह उगल रहा था
वो खास तरह का झाग
कोई चाहत लगाये बेठी थी
खुद को मिटाने को आग
कोई पानी के निचे गिन रहा था
साँस के चंद आखिरी बुलबुले
कुछ ऐसा ही हुआ था उस दिन
कुछ ऐसा ही हुआ होगा
और फिर हुई थी उस दिन
मज़बूरी में ,
तकलीफों में ,
बे सहारा पन में ,
ख़ुशी से
इक खुदखुशी
हाँ हुई थी उस दिन खुदखुशी
इक खुदकुशी !!