कोई चुनाव जीतने का , दाबा कर गया
चोरो के बस में नहीं थी जो ,
वो चोरी इक , नेता कर गया
गाल पिचके से थे जब नौकरी थी मिली ,
गुस खा -खा कर खुद को, तगड़ा कर गया
जिसे बुडे माँ-बाप का सहारा होना था
बड़ा होते ही उन्हें , बे सहारा कर गया
भूख कि खातिर आज मै भी ,
जेब काटने का , होंसला कर गया
तंग सा था वो महंगाई के चलते ,
सुना हैं कल रात लगा , फंदा मर गया
© शिव कुमार साहिल ©