दिल

मेरे दिल की जगह कोई खिलौना रख दिया जाए ,
वो दिल से खेलते रहते हैं , दर्द होता है "

शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

आईना



















चेहरा उतर ना पाया आईने में
आईना इल्तजा करता रहा
कुछ देर निहार कर खुद को
चेहरा ना जाने कहाँ गया

आईना तन्हा है सदियों से 
जिसका अपना चेहरा तक नही 

ठीक अपने रिश्ते की तरह !! 




© शिव कुमार साहिल ©

सोमवार, 5 नवंबर 2012

कवि और कविता



जिनके लिए लिखता है कवि , कविता
कविता पहुँच नही पाती उन तक


दावा करता है कवि
बदल देगा कविताओं से
भ्रष्ट व्यवस्थायों को
मिटा देगा असमानतायों को
पर कुछ भी तो नही
बदल पाया , मिटा पाया अब तक

जिनके लिए लिखता है कवि , कविता
कविता पहुँच नही पाती उन तक


कवितायें कवियों तक सीमित
साहित्य रूचि तक
बाज़ारबादी युग में
हर रूचि की है इक निश्चित कीमत

महँगाई के दौर में
मुफ्त में मिलता नही है कुछ भी
एक कविता भी नही
फिर केसे खरीदे
आम आदमी इक कविता

जिनके लिए लिखता है कवि , कविता
कविता पहुँच नही पाती उन तक 

                       









© शिव कुमार  साहिल ©

शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2012

इक तस्वीर

मेरे गमखाने में
बस इक तस्वीर है उसकी
जो बनाई है
मेरे लहू से उसने

फिर भी लगता है उसको  
के वो इतनी
रंगीन  नही है अभी


इसलिए तो
वो बनाती है रोज
नया इक जख्म दिल पर
और भरती है अपनी तस्वीर में
मेरे दिल का ताज़ा लहू
फिर भी  लगता है उसको
के वो इतनी
रंगीन  नही है अभी


मेरे गमखाने में
बस इक तस्वीर है उसकी
जो बनाई है
मेरे लहू से उसने



© शिव कुमार साहिल ©

गुरुवार, 12 जुलाई 2012

सजा दो मुझको




















नसीहत , बददुआ  या सजा दो मुझको 

रिश्ता ना मिटाओ मिटा दो  मुझको   

बहे आँखों से क्यों तब अक्श-ए -लहू ?
कह जाए वो जब भुला दो  मुझको   ?

आते-जाते रहो दर्द बढ़ाने के लिए 
कौन कहता हैं के दबा दो मुझको  

हूँ मुसाफिर इक रोज तो चला जाऊंगा 
दो इक रोज लिए ही पनाह दो मुझको 

ऐ समंदर तू अब के 'साहिल' से भी मिल 
तब तुम्हे मानुगा जो डूबा दो मुझको 



© शिव कुमार साहिल ©


शनिवार, 3 मार्च 2012

Antiquarian ( पुरानी चीजों का रख रखाव करने वाला)




वो Antiquarian कहता हैं मुझे ,

मेरे पुराने पहनावे , पुराने घर ,

और कुछ पुराने ख्यालातों पर हंसी आती हैं उसे !


मैं fasionable नही हो पाया ,

बदल नही सका , बदलते दौर के साथ

मोहल्ले में अब वो दर्जी

और उसकी दूकान भी नही रही ,

यहाँ मै अपने जमाने के कपडे सिलवाता था ,

रेडीमेड कपड़ों का बुटिक खोल लिया हैं,

उसके बेटे ने , उसके जाने के बाद !

मेरे जमाने का वहाँ कुछ भी नही मिलता !!

कुछ पुराने रस्मो-रिवाज भी

विकसित हो चुके हैं अब

इलेक्ट्रिक करंट से जलातें हैं, शहर में ,

जो कभी मर जाता हैं कोई रिश्ता !!


चलो छोड़ो ये सब

ये सब दुख ,दर्द , तकलीफ की बातें

और मेरे घर कि तरफ देखो जरा ..

वो देखो सर्दियाँ छुटियाँ मनाने जा रही हैं

और कुछ पुराने कपडे धुप सेक रहें हैं ,आंगन में बेठे ,

जाता देख रहे हैं सर्दियों को ,

उनके पैर नही हैं वरना

भाग जाते पीछे - पीछे ,

उड़ने की नकामजाब कोशिश कर रहे हैं सुबह से

आज शाम सुला दूंगा थपथपा कर , पुरानी पेटी में ,

जब तक सर्दियाँ छुटियों से वापिस नही लोटती !


और इक पुराने बक्से से

उसकी कुछ यादें भी तो निकल आई थी - सुबह,

आँखे हैं के नहलाए जा रही हैं सुबह से

कुछ पुरानी सी , यरा मैली सी जो दिखने लगी थी

गुज़रे वक्त के धुंएँ में घुम - फिरकर ,


उसकी यादों को मैं इक पल के लिए भी

पुराना नही होने दे सकता

इन्हें मैं हमेशा ताज़ा , बिलकुल नया रखूँगा

अपने पुराने ख्यालातों के दरमियाँ भी !


फिर भी उसका antiquarian कहना

मुझे अच्छा लगता हैं

मुझे suit करता हैं !!

@ शिव कुमार साहिल @

मंगलवार, 17 जनवरी 2012

ग़ज़ल - ( वो कहानी मेरी सुनाता हैं )


वो कहानी मेरी सुनाता हैं

इस तरह गम को वो सुलाता हैं


ढूंढता है मुझे अकेले में
जब मिले तो नज़र चुराता हैं


गया है उसे हुनर ये भी
मुस्कुराहट में ग़म छुपाता हैं


भूल जाता हूँ खुद को मैं साकी
तू ये पानी में क्या मिलाता हैं


जब कभी दिल जला तो आँखों से
गर्म पानी छलक ही जाता हैं


कोई भी घर में अब नही रहता
बंद दर सब को यही बताता हैं


चाँद बैठा हुआ है पहरे पर
कौन तारे यहॉं चुराता है ?


( उपरोक्त ग़ज़ल को आदरणीय तिलक राज कपूर जी का आशीर्वाद प्राप्त है , 4 जुलाई 2010 को उनके ब्लॉग( http://kadamdarkadam.blogspot.com/ ) पर पोस्ट हो चुकी हैं , आज अचानक इस ग़ज़ल से रु बू रु हुआऔर पोस्ट करने का मन हुआ )

© शिव कुमार साहिल @