वो कहानी मेरी सुनाता हैं
इस तरह गम को वो सुलाता हैं
ढूंढता है मुझे अकेले में
जब मिले तो नज़र चुराता हैं
आ गया है उसे हुनर ये भी
मुस्कुराहट में ग़म छुपाता हैं
भूल जाता हूँ खुद को मैं साकी
तू ये पानी में क्या मिलाता हैं
जब कभी दिल जला तो आँखों से
गर्म पानी छलक ही जाता हैं
कोई भी घर में अब नही रहता
बंद दर सब को यही बताता हैं
चाँद बैठा हुआ है पहरे पर
कौन तारे यहॉं चुराता है ?
( उपरोक्त ग़ज़ल को आदरणीय तिलक राज कपूर जी का आशीर्वाद प्राप्त है , 4 जुलाई 2010 को उनके ब्लॉग( http://kadamdarkadam.blogspot.com/ ) पर पोस्ट हो चुकी हैं , आज अचानक इस ग़ज़ल से रु बू रु हुआऔर पोस्ट करने का मन हुआ )
© शिव कुमार साहिल @
11 टिप्पणियां:
उम्दा रचना ...!
भूल जाता हूँ खुद को मैं साकी
तू ये पानी में क्या मिलाता हैं ...
सुभान अल्ला साहिल जी .... क्या गज़ब ढा रहे हैं इस शेर में ... मज़ा आ गया पूरी गज़ल में ...
भूल जाता हूँ खुद को मैं साकी
तू ये पानी में क्या मिलाता हैं
बहुत खूब ... उम्दा गज़ल
ढूँढता है मुझे अकेले में
जब मिले तो नज़र चुराता है
वाह...बेहतरीन...निहायत खूबसूरत ग़ज़ल कही है...तिलक राज कपूर जी तो वो राजा मिडास हैं जिसे छूलें वो सोना हो जाता है...
नीरज
नीरज जी द्वारा कहे गए
उपरोक्त कथन को अनुमोदित करते हुए
आपको इस ग़ज़ल पर बधाई देता हूँ ...!
बेहतरीन ग़ज़ल....बहुत खूब.....
वो कहानी मेरी सुनाता हैं
इस तरह गम को वो सुलाता हैं
ढूंढता है मुझे अकेले में
जब मिले तो नज़र चुराता हैं
Bahut khoob!
wo meri kahani sunta hai is tarah wo mere gum ko sulata hai ... khoobsurat panktiyan hai
आपका आभारी हूँ एक बार फिर याद करने के लिये।
रोजं करता है एक वादा वो
और फिर उसको भूल जाता है।
आप में संभावनायें हैं यही इंगित करती है ये ग़ज़ल।
आपका आभारी हूँ एक बार फिर याद करने के लिये।
रोजं करता है एक वादा वो
और फिर उसको भूल जाता है।
आप में संभावनायें हैं यही इंगित करती है ये ग़ज़ल।
देर से आया मगर दुरुस्त आया. पढ़ना शुरू किया और दिमाग सोचने लगा कि यहाँ तो आ चुका हूँ. फिर कमेन्ट बॉक्स खोला और देखा कि मैं अनुपस्थित हूँ. एक बार फिर, बाहर आया, रचना के नीचे का नोट देखा, फिर कहानी समझ में आ गई.
जहां तक याद आता है-उस समय भी टिप्पणी दी थी. बहुत अच्छी रचना है.
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