दिल

मेरे दिल की जगह कोई खिलौना रख दिया जाए ,
वो दिल से खेलते रहते हैं , दर्द होता है "

सोमवार, 25 जनवरी 2010

ठण्डे पड़ चुके एहसास !!


ठण्डे पड़ चुके

एहसासों कि
कडकडाती ठण्ड में
कहीं कोई एहसास
जम गया
विरह की बर्फ से
याद का घर और आँगन
सफ़ेद चादर में
बदल गया
उम्मीद के बिखरे हुए
छोटे-छोटे
साँस लेते हुए टुकड़े
परत दर परत
जमते रहे , दबते रहे
हवा में तेरती हुई,
फरियादें
अपनों को तलाशती,
आवाजें
यहाँ तक पहुँच पाई थी
वंही ठहर गई
वंही जम गई
इस सर्द ख़ामोशी में
रुकने वाला वकत भी
कंही रुक कर
यह मंजर देखने की
कोशिश में था
फिर हुआ यूँ के
दूर बहुत दूर
कहीं किसी दूसरी जगह
कोई दूसरा एहसास
आखिर दहक उठा
और उस एहसास की
आँख का गर्म अश्क
तपती हुई किरण बनके
जमी हुई
विरह की बर्फ
पिघला गया
और फिर पिघलती
बर्फ से बनी
मिलन की नदी में
तेरता हुआ इक उम्मीद का
जिंदा बचा आखरी टुकड़ा
हवाओं में फिर से तेर रही
फरियादों और आवाजों के
साथ निकल पड़ा
उसी तरफ
यहाँ से इस जमी हुई

विरह की बर्फ को
पिघलाने वो अक्श
आया था

यह मुमकिन हैं

कि यह दो एहसास

कभी एक भी हो पाएं

पर इतना तो तय हैं

कि अब दोबारा ये

एहसास फिर कभी जमेंगे नहीं !!


© शिव कुमार साहिल ©




शनिवार, 9 जनवरी 2010

अभी कल की ही तो बात हैं !!


अभी कल की ही तो बात हैं
हम साथ ही तो थे
इक ही छत के नीचे
इक ही घर में
हर साँस के सांझीदार
इक ही तो पसंद थी हमारी
मै जो सोचती थी वही तो करता था वो
मेरी हर पसंद का कीतना ख्याल था उसे
मेरे लिए क्या नहीं किया उसने
मेरी इषायों ने क्या नहीं बनाया उसे
उसे लुटेरा , अपराधी , पापी , अत्याचारी
हत्यारा तक बना डाला मैने
और एक मै थी के सदा
भर पेट खाकर भी भूखी ,
नाखुश , परेशान सी ...
जाने क्या पाना था मुझे
इस शुन्य तुल्य संसार में
जाने क्या होना था मुझे
इक इंसान से बढकर
अभी कल की ही तो बात हैं
हम साथ ही तो थे
आखिर किसी अनदेखी ताकत ने
हरा ही दिया मुझे
आईने के टूटे कांच की तरह
बस यूँ ही पल भर में
कर ही दिया जुदा हमारे रिश्ते को
हमेशा - हमेशा के लिए
पर मै तो निकल पड़ी हूँ
नए रस्ते पर
फिर से नयी शुरुयात के लिए
किसी नए घर के लिए
और वो शायद इस इंतज़ार में हैं
उसी मोड़ पर बेसहारा , बेकसूर
कि
कोई चार कंधे आकर
ले जायेंगे उसे दफ़नाने के लिए
या पवित्र आग में
जलाने के लिए
या फिर पड़ा रहने देंगे
मिट्टी के शरीर को
मिट्टी के भूखे - नंगे , कीड़े - मकोड़ों के बीच
जब तक कि जिस्म मिट्टी में घुल ना जाये ,
ओंस की बूंद की तरह सूख ना जाये
जब तक कि जिस्म अदृश्य ना हो जाये
अपनी रूह की तरह ..
मेरी तरह ......!!

हाँ अभी कल की ही तो बात हैं
हम साथ ही तो थे !!



© शिव कुमार 'साहिल' ©