दिल

मेरे दिल की जगह कोई खिलौना रख दिया जाए ,
वो दिल से खेलते रहते हैं , दर्द होता है "

सोमवार, 31 अगस्त 2009

मोहब्बत हैं हमको

आज तो कह कर रहेंगे , आपसे
मोहब्बत हैं हमको , आपसे
दुनिया की हमको जरुरत हैं नही
चाहिए सहारा हमको , आपसे

चलते - चलते आ गए ख्यालों के शहर में
रस्ते में हो गई मुलाकात, आपसे

आईने से भी शायद परदा मैं कर लू
क्या छुपाउँगा मगर मैं , आपसे

आपको वेसे तो सब मालूम हैं
जो बताने जा रहां हु , आपसे

अपने बारे में भला अब क्या बताएं
पूछते हैं हाल - ऐ - दिल अब , आपसे

फ़िर चाहे अंजाम मेरा जो भी हो
इजहार - ऐ - मोहब्बत चाहिए अब , आपसे


© शिव कुमार "साहिल" ©

काछ , ऐसा होता !!


काछ , मैं एक पंछी होता
न कोई सरहद मेरे लिए
न कोई रास्ता होता
न मकानों का

न झगडा
जमीनों का होता
काछ, मैं एक पंछी होता
हर अरमान मेरा
हर सपना सच होता
सूरज निकलते ही

नई मंजिल

हर दिन नया होता

यहाँ कही दिन डलता
वही सो जाता
काछ , मैं एक पंछी होता

पानी के झरने ,

फल , फूल ,
पोधे
ये धरती ,
ये नीला अम्बर

हाँ सब मेरा ही होता

काछ , मैं एक पंछी होता
पर क्या ? ये इंसान
मुझे मर्जी से
ज़ीने देते
जिन्होने बाँट रखा हैं
ज़मीं , आसमान ,
हवा , पानी

क्या मुझे आजाद
घुमने देते

कभी गलती से
सरहद
लांग भी आता
तो क्या आने देते
इन नफरतों,
इन सरहदों में

मैं भी
किसी हादसे का शिकार होता

अगर , मैं इक पंछी होता

ऐ दुनिया बनाने वाले
काछ , कही भी कोई झगडा न होता
कोई सरहद , कोई बटवारा न होता
काछ , ऐसा होता

तो संसार
कितना सुंदर होता
काछ , ऐसा होता
काछ , ऐसा ही होता !!

रविवार, 30 अगस्त 2009

कुछ तो तरस

कुछ तो तरस किया कीजिए
बेबजह शिकवा ना किया कीजिए

कब तलक हम यूँ ही गिरते रहें
कभी तो सहारा दिया कीजिए

शोंक नही हैं हमे , यूँ तडफने का
कभी तो परवाह किया कीजिए

जमाना क्या कहेगा मेरे बारे में
कभी तो लिहाज किया कीजिए

कभी तो मान लो अपने दिल की बात
इतना भी जुल्म ना ख़ुद पर किया कीजिए

बेचैन तुम भी हो मेरी तरह
कभी तो मान लिया कीजिए

इक हद होती हैं हर बात की , बाखुदा
इतने बहाने ना किया कीजिए

इश्क करते हो , फ़िर परदा क्यों
कभी तो इजहार किया कीजिए

इतना चुप रहना भी ठीक नही
कभी तो कुछ कहा कीजिये

आईने से पूछते हो, अपने बारे में
अजी , ख़ुद पे तो एतबार किया कीजिए

© शिव कुमार "साहिल" ©

मोहब्बत की थी

अपने जेसा समझने की गलती की थी
कभी हमने भी या खुदा , मोहब्बत की थी

किसको मिला हैं इन्साफ जमाने में
फ़िर क्यों बेबजह हमने भी , उम्मीद की थी

ख़ुद को देख कर आईने में , आईना तोड़ डाला
न जाने हमने किससे , बगाबत की थी

मैकदे - मैकदे , मस्जिद - मस्जिद भटके
हमने भी हर जगह , इल्तिजा की थी

न कोई रहगुजर मिली न कोई हमसफ़र
तलाशने की हमने भी , कोशिश की थी

हम तो तनहा नही थे, तेरी तरह ' साहिल '
हमसे तो, किसी की यादों ने, दोस्ती की थी

रविवार, 23 अगस्त 2009

भारत

हँसते हैं सरहदों पर बगल के वो मुलख
पूछते हैं, तेरा क्या हाल हैं, भारत

वक्त से पहले ही तू बुडा हो गया
कितनी नालायक निकली तेरी ओलाद हैं , भारत

पानी को पानी , खून को खून को न कह संकू
इतना मिलावटी तो नही था पहले तू , भारत

हिंदू , मुस्लिम की बात तो बड़ी पूरानी हो गई
अब तो भाई काट रहा हैं गला भाई का , भारत

बेशक परायों ने तुझे लुटा हैं सर से पांव तक
पर तेरे अपने भी कहाँ छोड़ रहे हैं कोई कसर , भारत

यह ठीक हैं की पहले सी गुलामी तो नही
पर क्या तुम असल में आजाद हो गए हो , भारत

न्याय के नाम पर मिल रही हैं तारीख फ़क्त तारीख
खूब पनप रहा हैं ये नया धंधा भी , भारत

घर के दरवाजों को , रिवाजों को जरुरत हैं बदलने की
नही तो कही का ना छोडेगा तुझे ये घुन , ऐ भारत

कल संग्राम था दमंकारिओं से आज व्यवस्था से हैं
कोई ना कोई नतीजा तो अब निकलेगा ही , भारत

किसी पार्क में कह रहा हैं इक शहीद का स्मारक
इसलिए तो नही मैं तुझ पर कुर्बान हुआ था भारत

गुरुवार, 20 अगस्त 2009

कोई बताये मुझको

कोई बताये मुझको के वो किसके आंसू थे
कत्ल हुई बेटी के या फिर इक माँ के आंसू थे

रो रही थी कोई औरत क्लीनिक की सीड़ियों पर
खुदा ही जाने वो किस पशचताप के आंसू थे

खुद के हाथों से गला घोंट कर, हाँ शायद
किसी मजबूर माँ से हुए अपराध के आंसू थे

ना जाने कौन सा डर तुड़वा रहा हैं अनदेखी कलीओं को
शायद उस अजनमी कली की आखिरी साँस के आंसू थे

क्या पता किसका चेहरा था उन् आंसुयों के पीछे "साहिल",
इक बात पकी हैं मगर वो किसी जस्वात के आंसू थे !

रविवार, 16 अगस्त 2009

मेरा डर


डरता नही हूँ , के वो आएगी
डर हैं , के वो केसे आएगी
वो बस से , रेलगाडी से
या फ़िर पैदल आएगी
शहर दर् शहर भटककर
मीलों चल कर आएगी
ना जाने कयों ,
इक डर सा सताता हैं
इतनी भीड़ में कोई हादसा न हो जाए
उस बस या रेलगाडी में
कोई बम न फट जाए
कितने घूम रहे हैं बा इज़त बरी होकर
कोई बलात्कारी न मिल जाए
उसके पहनावे से
किसी मजहव में , कबीले में
कोई ज़ंग न छिड जाए
लेकिन यह तय हैं के उसे आना हैं
रस्ते की हर मुश्किल से गुजर जाना हैं
उसके नाम से सब बाकिफ हैं
मगर पहचानते नहीं
वो सफ़र पर निकल चुकी हैं
यह बात पक्की हैं
सब तय हैं फिर भी
सहमी सी सोच हैं
वह कोई और नहीं
सब की परिचित मोत हैं
इसलिए डरता नही हूँ ,
के वो आएगी
डर हैं , के वो केसे आएगी ?

शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

भ्रष्ट नेतायों के लिए इक सुझाभ !

कुर्सी को सलाम हैं , कुर्सी को ही होगा
कल कोई और था यहाँ , कल कोई और होगा

तेरे आने का दिखाबा तो सबके चेहरों पर हैं
क्या तेरे जाने का अफ़सोस भी होगा

इस डर से ही बस करो अब गरीबों को लूटना
करोडों नसियतोँ में से किसी एक में तो असर होगा

गर मोका मिला हैं तो कोई नेक काम कर ले
कही न कही तुझ में भी इंसान छुपा होगा

हादसे होते हैं शहर में रोज कितने सोच
ऐसा माहोल तो एक दिन तेरे आंगन में भी होगा

कभी देखना आजमाके जिन्हें तू अपना कहता हैं
तुझ से दोगुना लगाब तेरी जागीर से ही होगा

कुछ कर नेक काम के सब तुम्हे याद रखें
फेंसला अब नही तो फ़िर कब होगा

रविवार, 2 अगस्त 2009

(भगवान् हम सब के साथ हैं)




जो भी होगा ठीक ही होगा
वो हमारे लिए भी सोचता होगा

वो दिखाई नहीं देता अपनी नादानी हैं
झांक जरा तेरे अंदर ही होगा

कभी मस्जिद की तरफ चल कर तो देख
वो रस्ते में ही खडा होगा

कोई दिल से सची फरियाद तो कर
जबाब उसका भी दिल से ही होगा

मोहबत करनी हैं तो सची कर
उसके चाहने वालों में तेरा नाम भी होगा


जो भी होगा ठीक ही होगा
वो हमारे लिए भी सोचता होगा !