अपने जेसा समझने की गलती की थी
कभी हमने भी या खुदा , मोहब्बत की थी
किसको मिला हैं इन्साफ जमाने में
फ़िर क्यों बेबजह हमने भी , उम्मीद की थी
ख़ुद को देख कर आईने में , आईना तोड़ डाला
न जाने हमने किससे , बगाबत की थी
मैकदे - मैकदे , मस्जिद - मस्जिद भटके
हमने भी हर जगह , इल्तिजा की थी
न कोई रहगुजर मिली न कोई हमसफ़र
तलाशने की हमने भी , कोशिश की थी
हम तो तनहा नही थे, तेरी तरह ' साहिल '
हमसे तो, किसी की यादों ने, दोस्ती की थी
1 टिप्पणी:
bahut khub..
4m ghazal
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