कोई बताये मुझको के वो किसके आंसू थे
कत्ल हुई बेटी के या फिर इक माँ के आंसू थे
रो रही थी कोई औरत क्लीनिक की सीड़ियों पर
खुदा ही जाने वो किस पशचताप के आंसू थे
खुद के हाथों से गला घोंट कर, हाँ शायद
किसी मजबूर माँ से हुए अपराध के आंसू थे
ना जाने कौन सा डर तुड़वा रहा हैं अनदेखी कलीओं को
शायद उस अजनमी कली की आखिरी साँस के आंसू थे
क्या पता किसका चेहरा था उन् आंसुयों के पीछे "साहिल",
इक बात पकी हैं मगर वो किसी जस्वात के आंसू थे !
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