बादल ने छींका और
सावन की पहली फुआर
इक साथ कई धुंधलाई ,
पुरानी यादों को
ताजा कर गई
रास्तों में पड़े हुए गढों के साथ-साथ
खुरदरी आँखों को भी भर गई ,
डूबा गई नमकीन से पानी में
वो सावन की पहली फुआर !
दिलासा देता था हर शाम
वो मेरी तन्हाई का साथी
मीलों पैदल चलके ,
जाने कहाँ से
दफअतन , बैठ जाता था
मेरी खिड़की पर आकर
कई दिनों से
दिखा नही हैं वो चाँद
शायद .........
फिसल के गिर गया होगा कही
इस गिले मोसम में !
ये मोसम जाने दे
तो उसे ढूंढ़ कर
टकोर ही कर आंऊ
पांव में मोच आ गई होगी उसके
पर उफ़ .......
ये गीला मोसम !!
(C) शिव कुमार साहिल (C)
5 टिप्पणियां:
बहुत दुखदायी है यह गीला मौसम ...अच्छी प्रस्तुति
टकोर शब्द का बहुत खूबसूरत प्रयोग किया है आपने अपनी इस रचना में...बधाई स्वीकारें..
नीरज
saawan ki fuhaaron se jurhi
bhooli-bisri yaadon ko
aise naazuq alfaaz mei baandh,
kaavya roop dene ke liye
mubarakbaad...
achhee rachnaa hai .
बहुत खूब ... गीला मौसम और चाँद की फिसलन .. गज़ब के एहसास समेटे अहिं इस रचना में ... लाजवाब ...
Nihayat sundar rachana hai!
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