गास फूस के मकानों को चिंगारी से भी डर होता हैं
इलाज करनें वालों को भी बीमारी से डर होता हैं
ईमान बेच बेच कर ना दोलतें कमाओ , रहिसजादो
लुट ले जाने का जिसका चारदिवारी में भी डर होता हैं
महफूज तो हैं नही जे ख्याल भी अपने
जहन की गलिओं में भी किसी पहरेदारी से डर होता हैं
परत दर परत तह को हटाना, मजार से
खून चलने का ऐसी लाचारी में भी डर होता हैं
!!!!!!!!!! साहिल !!!!!!!!
1 टिप्पणी:
प्रिय साहिल,
पूरे एक माह के बाद ब्लॉग पर आया हूँ. तुमने मेरे बारे में बहुत गलत धारणा बनाई होगी कि मैं असभ्य, अशिष्ट और जाने क्या क्या हूँ, लेकिन मैं थोड़ी परेशानियों में था. अपना ई - मेल आई डी भेज सको तो भेज देना. मुझे कुछ कहना है.
सर्वत जमाल
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