अब के जंहा का हर अंदाज़ नया हो रहा हैं
इन्सां बाँट रहा तकदीरे, खुदा खाली हाथ रो रहा हैं
नींद से जाग चुके हैं हजारों कुम्भकरण
राम न जाने सेनायों संग कंहा सो रहा हैं
सत्य , अहिंसा, न्याय, धर्म जल रहें हैं बारी बारी ,
सम्मान झूठ , छल- कपट का हर दर पर हो रहा हैं
पहले पाप धोने के लिए जाते थे गंगा में नहाने
अब जिसके पानी से आदम खून लगा खंजर धो रहा हैं
सलाम तेरी तरक्की को , ऐ तरक्की पसंद इन्सां
अब तो पेट से बाहर आते ही तू जबां हो रहा हैं !!
इन्सां बाँट रहा तकदीरे, खुदा खाली हाथ रो रहा हैं
नींद से जाग चुके हैं हजारों कुम्भकरण
राम न जाने सेनायों संग कंहा सो रहा हैं
सत्य , अहिंसा, न्याय, धर्म जल रहें हैं बारी बारी ,
सम्मान झूठ , छल- कपट का हर दर पर हो रहा हैं
पहले पाप धोने के लिए जाते थे गंगा में नहाने
अब जिसके पानी से आदम खून लगा खंजर धो रहा हैं
सलाम तेरी तरक्की को , ऐ तरक्की पसंद इन्सां
अब तो पेट से बाहर आते ही तू जबां हो रहा हैं !!
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