चूल्हे ठण्डे और दरवाजों पर लगे जाले हैं
आदमी ने भूख की खातिर आदमी काट डाले हैं
कूड़े-कर्कट से खाकर , लाखों फुटपाथ पर सोते हैं
और सरकारें कहती हैं कि हमने हालात बदल डाले हैं
पूजा करते थे जो हाथ , तेरी मूर्त को कभी
उन्ही हाथों ने या खुदा तेरे टुकड़े कर डाले हैं
औरतें - औरतों से खुश , मर्द - मर्दों से
नए कानूनों ने भी संस्कार बदल डाले हैं
जब दे ना पाए इज्जत से दो वक्त कि रोटी उसे
चंद एक हरामियों ने औरत के अंग बेच डाले हैं
कुर्सी , सता , दौलत के नशे में डूबे नेतायों ने
इतिहास से पुछो, कितने पाकिस्तान बना डाले हैं
© शिव कुमार 'साहिल' ©