मश्हूरे -आलम में क्या रखा हैं
असल लिवाजों कों सबने छुपा रखा हैं
दर्द साथ हैं मेरे साये की तरह
मगर उसने भी चेहरा छुपा रखा हैं
किस पर यकीं करूँ , जरूरत के वक़्त
ख़ुद के दिल ने भी पर्दा बना रखा हैं
वो आ जाए चाहे बुझाने के लिए ,
हमने चिराग - ऐ - चाहत जला रखा हैं
किसी कों केसे मानु, ख़ुद की तडफन का सबब
अपनी सोच ने ही जब हमे उलझा रखा हैं
कही पर ना मिला वो रहनुमा, वो हमसफ़र ,
अब हर राह से हमने, फांसला बना रखा हैं
मिट ही जाएँगी तेरे साथ ये यादें भी "साहिल"
तुने खाम खा उलझन कों बडा रखा हैं !
© शिव कुमार "साहिल" ©
2 टिप्पणियां:
sach kahun i dnt knew tu itna acha likh sakta hai.. keep it up yar.....
very nice ,,,,
m really touched,u hv defind internal conflicts very well ,,
God bless u,,
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