दिल

मेरे दिल की जगह कोई खिलौना रख दिया जाए ,
वो दिल से खेलते रहते हैं , दर्द होता है "

शनिवार, 16 मई 2015

रात भर , रात रोती रही 
कुछ पराए सपनो की मौत  पर 
सुबह उठते ही सूरज ने देखा 
अपनी छाती पीट रही हवा को 
कुछ खो गया था उसका भी 
दरख़्त उड़ जाना चाहते थे हवा के संग 
ऊब गए थे इक ही जगह खड़े हुए 
दिन भर सूरज ने भी आग ऊगली 
तंदूर सा तपाया धरती को 
लोग दौड़ते रहे अपनी परछाई के आगे पीछे 
क्रोध , हवस , घमंड , लालच के पैहरान  पहनकर 
बच्चे सीख रहे थे गलतियां करना बड़ों से 
धर्म के कुछ चौराहों को खून से रंगा जा रहा था 

वक्त देख रहा था सबको 
इक मैकदे  से बैठकर 
पी  रहा था सबकी उम्र का याम 
और सोच रहा था 
कितने डूबे हुए हैं सब गुनाहों के समंदर में 

आज रात फिर , रात भर रोती रहेगी रात 
कुछ और पराए सपनो की मौत पर  । 

1 टिप्पणी:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सब जागते हैं मैकदे में देखता है वक़्त टूटते सपने ... जिंदगी यूँ ही तमाम होती रहती है ...