दिल
मेरे दिल की जगह कोई खिलौना रख दिया जाए ,
वो दिल से खेलते रहते हैं , दर्द होता है "
शनिवार, 23 फ़रवरी 2013
शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013
"हम ना समझ पाए निगाहों के माइने उनके !
सब समझते थे जबके बेजुबान आईने उनके !!"
(ग़ज़ल)
आँख को आब समझता कब हैं
आके आँखों में ठहरता कब हैं
जिरह करता हैं वो हर वक्त मुझसे
और कहता हैं के झगड़ता कब हैं
रोज जलती हैं तन्हाई दिल में
दिल में धुँआ हैं निकलता कब हैं
रोज मनाता हूँ के भूल जा उसको
नादान दिल पर समझता कब हैं
सब समझते थे जबके बेजुबान आईने उनके !!"
(ग़ज़ल)
आँख को आब समझता कब हैं
आके आँखों में ठहरता कब हैं
जिरह करता हैं वो हर वक्त मुझसे
और कहता हैं के झगड़ता कब हैं
रोज जलती हैं तन्हाई दिल में
दिल में धुँआ हैं निकलता कब हैं
रोज मनाता हूँ के भूल जा उसको
नादान दिल पर समझता कब हैं
© शिव कुमार "साहिल" ©
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