इक ऐसी ग़ज़ल हैं जिसे कभी कहूँगा नही
इक ऐसा लफ्ज़ हैं जो तुझ तक पहुंचा ही नही
मेरा तो सब अधुरा सा तुने छोड़ दिया
सारा कसूर दिल का हैं दिल ही मुकरे अब
छाया तलिस्म तुम्हारा हैं केसे निकले अब
कोई तो खोल दे रस्ता जो ले जाए तेरी जानिब
या तुम ही निकलो घर से कभी मेरी मानिद
नहीं तो नज्म निकल कर सवाल पूछेगी तुम्हे
नहीं तो गजल भी ताने कसेगी तुम्हे
तो आवारा इक लफ्ज़ परेशाँ करेगा तुम्हे
तुम आ जाओ या मोत आ जाए अब
सारा कसूर गर दिल का हैं मैं क्यों भुगतू सब !!
@ शिव कुमार साहिल @
6 टिप्पणियां:
Bahut khoob ... lajawaab nazm hai ... seene se baahar aa gayi aur kamaal kar diya ...
Kya baat hai Shiv Bhai...bahut khoob.
बहुत खूब ..सुन्दर नज़्म
आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
चुने हुए चिट्ठे ..आपके लिए नज़राना
wonderful......keep it up friend.
HERNIE CRURALE etranglee depuis quatre jours.
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