आज गम इतना बढ़ाना के जमाना याद रखे
शराब इतनी पिलाना के मयखाना याद रखे
बंद कर दो दरवाज़े हवा भी गुजर ना पाए
तन्हा इतना कर जाना के तयखाना याद रखे
खून पीकर ही प्यास बुझे तो हाज़िर हूं हजूर
खून इतना बहाना के पैमाना याद रखे
कब से दिल सुलग रहा मुझको भी आग लगा
और फिर इतना जलाना के परवाना याद रखे
मेरी दीवानगी को क्या तोहफा हैं मिला
कब्र को इतना सजाना हर दीवाना याद रखे
© शिव कुमार साहिल ©
शराब इतनी पिलाना के मयखाना याद रखे
बंद कर दो दरवाज़े हवा भी गुजर ना पाए
तन्हा इतना कर जाना के तयखाना याद रखे
खून पीकर ही प्यास बुझे तो हाज़िर हूं हजूर
खून इतना बहाना के पैमाना याद रखे
कब से दिल सुलग रहा मुझको भी आग लगा
और फिर इतना जलाना के परवाना याद रखे
मेरी दीवानगी को क्या तोहफा हैं मिला
कब्र को इतना सजाना हर दीवाना याद रखे
© शिव कुमार साहिल ©
आप जी से विनम्र निवेदन हैं के उपरोक्त ग़ज़ल को अपना आशीर्बाद दे , क्योंकि ग़ज़ल कि बारीकियों , तकनिकी पक्ष से तो मैं अभी नवाकिफ ही हूं , इसलिए आप फ़नकारो से आग्रह हे के उपरोक्त ग़ज़ल को ग़ज़ल बना दीजे और मेरा मार्गदर्शन कीजिए ! धन्यबाद !