कोई चुनाव जीतने का , दाबा कर गया
चोरो के बस में नहीं थी जो ,
वो चोरी इक , नेता कर गया
गाल पिचके से थे जब नौकरी थी मिली ,
गुस खा -खा कर खुद को, तगड़ा कर गया
जिसे बुडे माँ-बाप का सहारा होना था
बड़ा होते ही उन्हें , बे सहारा कर गया
भूख कि खातिर आज मै भी ,
जेब काटने का , होंसला कर गया
तंग सा था वो महंगाई के चलते ,
सुना हैं कल रात लगा , फंदा मर गया
© शिव कुमार साहिल ©
8 टिप्पणियां:
चोरो के बस में नहीं थी जो ,
वो चोरी इक , नेता कर गया
बहुत शानदार. बधाई.
shahil ji har sabd ne aaj ki sachhi ko samne rakh diya hai........jaisa aaj ka samy guajar raha vastuth wahi byan kiya hai ........aur aaj ke neta ji ki to puchho mat ... wo sareaam janta ke jeb me daka daal rahe par sabhi muk hain....
भूख कि खातिर आज मै भी ,
जेब काटने का , होंसला कर गया
Wah !! Kya Baat Hein
Very nice bro... luv it
आ़पके पास भाव और लफ़्जों की कमी नहीं, थोड़ा शिल्प पर मेहनत की ज़रूरत है।
कहते रहिये,
बढ़ते रहिये।
दिल की बातें,
लिखते रहिये।
खूबसूरत ग़ज़ल ... नये अंदाज़ के शेर हैं .... बहुत अच्छे लगे ...
वाह......... बहुत खूब.....कितनी मार्मिक कविता हैं
bhaav achhe hain ..craft pe dhyan dijiye jara sa.. aapki shayri umda rahegi
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