अभी कल की ही तो बात हैं
हम साथ ही तो थे
इक ही छत के नीचे
इक ही घर में
हर साँस के सांझीदार
इक ही तो पसंद थी हमारी
मै जो सोचती थी वही तो करता था वो
मेरी हर पसंद का कीतना ख्याल था उसे
मेरे लिए क्या नहीं किया उसने
मेरी इषायों ने क्या नहीं बनाया उसे
उसे लुटेरा , अपराधी , पापी , अत्याचारी
हत्यारा तक बना डाला मैने
और एक मै थी के सदा
भर पेट खाकर भी भूखी ,
नाखुश , परेशान सी ...
न जाने क्या पाना था मुझे
इस शुन्य तुल्य संसार में
न जाने क्या होना था मुझे
इक इंसान से बढकर
अभी कल की ही तो बात हैं
हम साथ ही तो थे
आखिर किसी अनदेखी ताकत ने
हरा ही दिया मुझे
आईने के टूटे कांच की तरह
बस यूँ ही पल भर में
कर ही दिया जुदा हमारे रिश्ते को
हमेशा - हमेशा के लिए
पर मै तो निकल पड़ी हूँ
नए रस्ते पर
फिर से नयी शुरुयात के लिए
किसी नए घर के लिए
और वो शायद इस इंतज़ार में हैं
उसी मोड़ पर बेसहारा , बेकसूर
कि कोई चार कंधे आकर
ले जायेंगे उसे दफ़नाने के लिए
या पवित्र आग में
जलाने के लिए
या फिर पड़ा रहने देंगे
मिट्टी के शरीर को
मिट्टी के भूखे - नंगे , कीड़े - मकोड़ों के बीच
जब तक कि जिस्म मिट्टी में घुल ना जाये ,
ओंस की बूंद की तरह सूख ना जाये
जब तक कि जिस्म अदृश्य ना हो जाये
अपनी रूह की तरह ..
मेरी तरह ......!!
हाँ अभी कल की ही तो बात हैं
हम साथ ही तो थे !!
© शिव कुमार 'साहिल' ©
4 टिप्पणियां:
yar u r a very good writer... u will reach heights
anterman ki kashmokash ko ukerti ye rachna bahut kamaal ki likhi hai.badhayi.
bahut sundar rachna
bahut bahut abhar
wah ....dil khush k doya apne.....i am proud on myself..that i got such a talented frnd......
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