दर्द की आग हैं शहर में चारों तरफ
कोई जल रहा हैं कोई जला रहा हैं
मेरे माजी का सहारा था मुझको
वो भी डूबने के लिए जा रहा हैं
इन दिनों शोर-शराबे हैं, बुतखानो में
खुदा बनके इक खुदा पश्ता रहा हैं
वो भी हो गया शायद अपने दर्द से वाकिफ
जो देखने पर ही इतना मुस्कुरा रहा हैं
जब ख़ुद ही हो वजह अपनी बरबादियों की
फ़िर क्यों किस्मत से गिला जता रहा हैं
जिसको पहचाने न कोई शहर में 'साहिल'
वो ही चोराहे पे सबका पता बता रहा हैं
© शिव कुमार 'साहिल' ©
कोई जल रहा हैं कोई जला रहा हैं
मेरे माजी का सहारा था मुझको
वो भी डूबने के लिए जा रहा हैं
इन दिनों शोर-शराबे हैं, बुतखानो में
खुदा बनके इक खुदा पश्ता रहा हैं
वो भी हो गया शायद अपने दर्द से वाकिफ
जो देखने पर ही इतना मुस्कुरा रहा हैं
जब ख़ुद ही हो वजह अपनी बरबादियों की
फ़िर क्यों किस्मत से गिला जता रहा हैं
जिसको पहचाने न कोई शहर में 'साहिल'
वो ही चोराहे पे सबका पता बता रहा हैं
© शिव कुमार 'साहिल' ©