दिल

मेरे दिल की जगह कोई खिलौना रख दिया जाए ,
वो दिल से खेलते रहते हैं , दर्द होता है "

रविवार, 30 अगस्त 2009

मोहब्बत की थी

अपने जेसा समझने की गलती की थी
कभी हमने भी या खुदा , मोहब्बत की थी

किसको मिला हैं इन्साफ जमाने में
फ़िर क्यों बेबजह हमने भी , उम्मीद की थी

ख़ुद को देख कर आईने में , आईना तोड़ डाला
न जाने हमने किससे , बगाबत की थी

मैकदे - मैकदे , मस्जिद - मस्जिद भटके
हमने भी हर जगह , इल्तिजा की थी

न कोई रहगुजर मिली न कोई हमसफ़र
तलाशने की हमने भी , कोशिश की थी

हम तो तनहा नही थे, तेरी तरह ' साहिल '
हमसे तो, किसी की यादों ने, दोस्ती की थी

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

bahut khub..
4m ghazal