दिल

मेरे दिल की जगह कोई खिलौना रख दिया जाए ,
वो दिल से खेलते रहते हैं , दर्द होता है "

शनिवार, 24 सितंबर 2011

तेरा ख्याल





वो देख केसे इक नज्म
चली आ रही हैं ,
कुछ आवारा से लफ्जों को हांकते हुए ,
मेरे जहन की तरफ


देख, केसे वो बिखरे-बिखरे से
जाहिल से अल्फाज़
कितनी तहज़ीब कितनी तरतीब से
छोटे - छोटे कदमो की
मध्यम - मध्यम आवाज के साथ
चुपचाप चरते विचरते
नज्म के इशारों पर
चले आ रहे हैं


वो देख कुछ शव्दों के बदन पर
तेरी खुशबू की गीली मिटटी
अब भी चिपकी हुई हैं
वो देख कुछ नन्हे से लफ्जों ने
अपनी पीठ पर तेरे खावों को
अब भी उठाये रखा हैं
और यरा इनकी निगाहों में
इक दफा झांक कर तो देख
तेरे चहरे को भूल ही नही पाई हैं
ये गमगीन सी आँखे


तेरी मोजुदगी में , तेरी रंगीनियों में
तेरी यादों , तेरी बातों के
झरने के नीचे नहा कर
कितनी निखर आई हैं ये नज्म
देख केसे ये अलफ़ाज़ जी उठे हैं
देख केसे इक नज्म को

जिंदगी वख्श के जा रहे हैं

तेरे ख्याल भर ही ...

कभी आओ मेरे भी घर
यरा सा छु ही जाओ मुझे !!





© शिव कुमार साहिल ©

7 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूबसूरत नज़्म ..

वर्तनी की अशुद्धि दूर कर लें तो चार चाँद लग जायेंगे

केसे -- कैसे

यरा -- ज़रा

और भी हो सकती हैं ..अभी इन पर ही ध्यान गया ..मेरे ब्लॉग पर भी निमंत्रण है ..

नीरज गोस्वामी ने कहा…

इस खूबसूरत नज़्म के लिए दिली दाद कबूल करें

नीरज

shama ने कहा…

Bahut khoobsoorat mazm. Sagitaji sahee kah rahee hain!

तिलक राज कपूर ने कहा…

खुबसूरत भाव-शब्‍दों से सजी
सच कहूँ तो नज्‍़म ये अच्‍छी लगी।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

वाह शिव कुमार जी ...बेतरतीब शब्दों को इस नज़्म में साध लिया आपने ... बहुत ही खूबसूरत ...

Dr. kavita 'kiran' (poetess) ने कहा…

aapki sabhi nazme aur kavitayen kabile-daad hain..bahut bhavpoorn..apko padhkar achha laga...aap eri gazlon ko itna pyar dete hain..aur dil se sunte sarahte hain jankar sukhad laga..CD available hai..chand dharti pe utarta kab hai..mail-kavitakiran2008@gmail.com....:)shukriya

vidya ने कहा…

बहुत खूब...
सुन्दर भाव...