मैने हाथ को कंघी बनाकर
कभी गेसू सँवारे थे तुम्हारे
क्या याद है तुम्हे
याद है वो जेठ की दोपहर
जब मैं मीलों पैदल चलकर
इक झलक देखने को आता था तुम्हे
और वो सर्द बर्फीली रातों का तन्हापन
उन कागज़ों से भी रंगे लहू
उड़ गया होगा
जिन पर दिल के अरमान उतारे थे
नफ़्ज़े लहू से मैने
शायद कुछ याद भी हो तुम्हे , पर
सुना है अब तुम
पहले सी रही नही हो
मैं भी तो बदल गया हूँ बिल्कुल
वादे फिसल गए जुबां से गिर गए कहीं
कसमें बिछड़ गई बेरहम भीड़ में ,
खेर ,
क्या करती हो अब तुम
मैं तो माजी की तहरीरें लिखता हूँ अब
कभी हंसती सी , कभी उदास सी लगती हैं तहरीरें
मोनालिसा की तस्वीर की तरह ।
3 टिप्पणियां:
मोनालिसा की तस्वीर की तरह Why
Great article, Thanks for your great information, the content is quiet interesting. I will be waiting for your next post.
Hey keep posting such good and meaningful articles.
एक टिप्पणी भेजें