दिल

मेरे दिल की जगह कोई खिलौना रख दिया जाए ,
वो दिल से खेलते रहते हैं , दर्द होता है "

मंगलवार, 3 नवंबर 2009

दर्द की आग !!


दर्द की आग हैं शहर में चारों तरफ
कोई जल रहा हैं कोई जला रहा हैं

मेरे माजी का सहारा था मुझको
वो भी डूबने के लिए जा रहा हैं

इन दिनों शोर-शराबे हैं, बुतखानो में
खुदा बनके इक खुदा पश्ता रहा हैं

वो भी हो गया शायद अपने दर्द से वाकिफ
जो देखने पर ही इतना मुस्कुरा रहा हैं

जब ख़ुद ही हो वजह अपनी बरबादियों की
फ़िर क्यों किस्मत से गिला जता रहा हैं

जिसको पहचाने न कोई शहर में 'साहिल'
वो ही चोराहे पे सबका पता बता रहा हैं


© शिव कुमार 'साहिल' ©

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

Hello! Sahil, Tumhare haatho me jadoo hai!Tumahri baath sidhe dil ko choo jati hai! Itna Dard aur Ithni Gehari baat likhne ke liye sukriya. Keep writing and God Bless You!

kamal saini ने कहा…

sahil Ji , aapki book me Pad Chuka hun , apki sari ki sari 150 Ghazals mujhe bahut achi lagi Banglore Fair Festival ke liye meri taraf se bahut shubkamnein....