
रिश्तों के किसी सूखे पेड़ से
गिरते गए , टूटते गए
रिश्तों के सूखे फुल कोम्प्लें और पत्तें
बे सहारा माँ बाप कंही
कंही रोते बिलकते लावारिस बच्चे
कदम जलते गए
जिधेर गए
बेशक फूंक-फूंक कर थे रखे
कुछ ऐसा हुआ के वो
रिश्तों का पेड़ टूट ही गया
कुछ ऐसा हुआ के रिश्तों से
कोई रिश्ता सदा के लिए
रूठ ही गया
कुछ ऐसा ही हुआ था उस दिन
कुछ ऐसा ही हुआ होगा
कोई खाव फंदे पर लटक गया
किसी मज़बूरी का मुंह उगल रहा था
वो खास तरह का झाग
कोई चाहत लगाये बेठी थी
खुद को मिटाने को आग
कोई पानी के निचे गिन रहा था
साँस के चंद आखिरी बुलबुले
कुछ ऐसा ही हुआ था उस दिन
कुछ ऐसा ही हुआ होगा
और फिर हुई थी उस दिन
मज़बूरी में ,
तकलीफों में ,
बे सहारा पन में ,
ख़ुशी से
इक खुदखुशी
हाँ हुई थी उस दिन खुदखुशी
इक खुदकुशी !!
1 टिप्पणी:
मज़बूरी में ,
तकलीफों में ,
बे सहारा पन में ,
ख़ुशी से
इक खुदखुशी
हाँ हुई थी उस दिन खुदखुशी
इक खुदकुशी !!
aankh bhar aai
एक टिप्पणी भेजें