दिल

मेरे दिल की जगह कोई खिलौना रख दिया जाए ,
वो दिल से खेलते रहते हैं , दर्द होता है "

शनिवार, 26 सितंबर 2009

बेहरी दुनिया में हलकी सी आवाज छोड़ जाऊंगा मैं
कुछ अनकहे , अनलिखे अल्फाज़ छोड़ जाऊंगा मैं

किसी के दिल में बनाई थी कभी हमने भी जगह
उस जगह पर धुंधली सी याद छोड़ जाऊंगा मैं

कितने घोटे गले उस हकीक़त ने मेरे खावों के, मगर
उसके दरवाजे पर तडफता इक खाव छोड़ जाऊंगा मैं

भटक रहे हैं वो खामखा ढूंढने सवालों के जवाव
उनके हर सवाल का जबाव छोड़ जाऊंगा मैं

ता उमर सफ़र रहा घर से मस्जिद का , या खुदा
अब के सफर में हर फरियाद छोड़ जाऊंगा मैं

केसे सुनाता मैं " साहिल" अपनी इन बेहरों को दास्ताँ
लिख सका तो सब के लिये इक किताब छोड़ जाऊंगा मैं

© शिव कुमार " साहिल " ©

1 टिप्पणी:

kritika raj ने कहा…

ek khamoshi hoti hai kalam mein jo
alfaazon k shor se kai achhi hai,
pahunch hi jaati hai fariyad us parvane ki khuda tk agar mohabat sachhi hai ......may god bless u i
really liked it