दिल

मेरे दिल की जगह कोई खिलौना रख दिया जाए ,
वो दिल से खेलते रहते हैं , दर्द होता है "

गुरुवार, 30 जुलाई 2009

भूख

मेरी रचना गिरिराज साप्ताहिक के २०-२६-मई अंक में छपी , जो हिमाचल सरकार दोआरा पर्काशित होती हैं , पड़कर बहुत अछा लगा ! रचना आपके सामनें प्रस्तुत कर रहां हूँ .....


यूँ आज तक बस मांगकर खाता रहा जो मिला
भूख हैं कम्बखत कभी कम न हुई
बद सें बतहर थी ये टुकडों की जिन्दगी
गली के कुते की तरह
मगर जीने की चाह कभी कम न हुई ,
स्कूल को जाते उन बच्चों की तरह
में भी करता था जिदद के नहीं जायूँगा
जब मांगनें की पढाई थी इन गलिओं में शुरू हुई ,
रंग बिरंगे रंगों में मैं मटमैला यूंही पड़ा रहा
मगर मुलाकात न कभी अपने से हें हुई ,
फ़ेंक कर सिक्के चले जाते थे गुजरनें बाले
अपनी तो पहचान बस भिखारी नाम से हुई ,
यूँ आज तक बस मांगकर खाता रहा जो मिला
भूख हैं कम्बखत कभी कम न हुई
बद सें बतहर थी ये टुकडों की जिन्दगी
गली के कुते की तरह
मगर जीने की चाह कभी कम न हुई !


००००००० साहिल ०००००००

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