दिल

मेरे दिल की जगह कोई खिलौना रख दिया जाए ,
वो दिल से खेलते रहते हैं , दर्द होता है "

गुरुवार, 12 जुलाई 2012

सजा दो मुझको




















नसीहत , बददुआ  या सजा दो मुझको 

रिश्ता ना मिटाओ मिटा दो  मुझको   

बहे आँखों से क्यों तब अक्श-ए -लहू ?
कह जाए वो जब भुला दो  मुझको   ?

आते-जाते रहो दर्द बढ़ाने के लिए 
कौन कहता हैं के दबा दो मुझको  

हूँ मुसाफिर इक रोज तो चला जाऊंगा 
दो इक रोज लिए ही पनाह दो मुझको 

ऐ समंदर तू अब के 'साहिल' से भी मिल 
तब तुम्हे मानुगा जो डूबा दो मुझको 



© शिव कुमार साहिल ©


4 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

bakbaas hoti hein shayari

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब साहिल जी ...

हूँ मुसाफिर इक रोज तो चला जाऊंगा
दो इक रोज लिए ही पनाह दो मुझको ..

लाजवाब शेर ही इस खूबसूरत गज़ल का ... बहुत दिनों बाद आना हुवा है आपका ये गज़ल ले के ...

सर्वत एम० ने कहा…

सबसे ज़रूरी होता है ग़ज़ल का अनुशासन. मुझे अफ़सोस यह है कि तुम ने अब तक ग़ज़ल सीखने का कोई सार्थक प्रयास नहीं किया.
अभी वक्त है, सीखने की कोई उम्र नहीं होती और सीखने में समय भी नहीं लगता. मुझे ही देख लो वक्त नहीं लगा.
मुझे दुःख है मैं तुम्हारी तारीफ नहीं कर सका.

MUKTTA ने कहा…

सच्च