
वो कहानी मेरी सुनाता हैं
इस तरह गम को वो सुलाता हैं
ढूंढता है मुझे अकेले में
जब मिले तो नज़र चुराता हैं
आ गया है उसे हुनर ये भी
मुस्कुराहट में ग़म छुपाता हैं
भूल जाता हूँ खुद को मैं साकी
तू ये पानी में क्या मिलाता हैं
जब कभी दिल जला तो आँखों से
गर्म पानी छलक ही जाता हैं
कोई भी घर में अब नही रहता
बंद दर सब को यही बताता हैं
चाँद बैठा हुआ है पहरे पर
कौन तारे यहॉं चुराता है ?
( उपरोक्त ग़ज़ल को आदरणीय तिलक राज कपूर जी का आशीर्वाद प्राप्त है , 4 जुलाई 2010 को उनके ब्लॉग( http://kadamdarkadam.blogspot.com/ ) पर पोस्ट हो चुकी हैं , आज अचानक इस ग़ज़ल से रु बू रु हुआऔर पोस्ट करने का मन हुआ )
© शिव कुमार साहिल @