दिल

मेरे दिल की जगह कोई खिलौना रख दिया जाए ,
वो दिल से खेलते रहते हैं , दर्द होता है "

शुक्रवार, 22 मई 2015

छलावा

हुस्न है , अदा है , खूबसूरती का दावा भी बहुत है 

आईना देखता है उनमे इक छलावा भी बहुत है 

बरसो करते रहे दुआएं हम मिलने की उनसे

 
आज मिले वो ऐसे मिलने का पछतावा भी बहुत है 


कहूँ तो क्या कहूँ तुझसे ऐ मेरे दिले ज़हीन अब 


तेरा तो अपनों को परखने का दावा भी बहुत है 



हुस्न है , अदा है , खूबसूरती का दावा भी बहुत है


आईना देखता है उनमे इक छलावा भी बहुत है 


शनिवार, 16 मई 2015

रात भर , रात रोती रही 
कुछ पराए सपनो की मौत  पर 
सुबह उठते ही सूरज ने देखा 
अपनी छाती पीट रही हवा को 
कुछ खो गया था उसका भी 
दरख़्त उड़ जाना चाहते थे हवा के संग 
ऊब गए थे इक ही जगह खड़े हुए 
दिन भर सूरज ने भी आग ऊगली 
तंदूर सा तपाया धरती को 
लोग दौड़ते रहे अपनी परछाई के आगे पीछे 
क्रोध , हवस , घमंड , लालच के पैहरान  पहनकर 
बच्चे सीख रहे थे गलतियां करना बड़ों से 
धर्म के कुछ चौराहों को खून से रंगा जा रहा था 

वक्त देख रहा था सबको 
इक मैकदे  से बैठकर 
पी  रहा था सबकी उम्र का याम 
और सोच रहा था 
कितने डूबे हुए हैं सब गुनाहों के समंदर में 

आज रात फिर , रात भर रोती रहेगी रात 
कुछ और पराए सपनो की मौत पर  ।