दिल

मेरे दिल की जगह कोई खिलौना रख दिया जाए ,
वो दिल से खेलते रहते हैं , दर्द होता है "

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

"हम ना समझ पाए निगाहों के माइने उनके !
सब समझते थे जबके बेजुबान आईने उनके !!"
















                        (ग़ज़ल)


आँख को आब समझता कब हैं
आके आँखों में ठहरता कब हैं


जिरह करता हैं वो हर वक्त मुझसे
और कहता हैं के झगड़ता कब हैं


रोज जलती हैं तन्हाई दिल में
दिल में धुँआ हैं निकलता कब हैं 


रोज मनाता हूँ के भूल जा उसको
नादान  दिल पर समझता कब हैं



©  शिव कुमार "साहिल" ©

3 टिप्‍पणियां:

तिलक राज कपूर ने कहा…

अचछे शेर हैं।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूब ...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

जिरह करता हैं वो हर वक्त मुझसे
और कहता हैं के झगड़ता कब हैं ...

बहुत खूब ... लाजवाब शेर है इस गज़ल का ... मज़ा आ गया ...