दिल

मेरे दिल की जगह कोई खिलौना रख दिया जाए ,
वो दिल से खेलते रहते हैं , दर्द होता है "

मंगलवार, 9 अगस्त 2011

गीला मोसम !!

बादल ने छींका और
सावन
की पहली फुआर
इक
साथ कई धुंधलाई ,
पुरानी
यादों को
ताजा
कर गई
रास्तों
में पड़े हुए गढों के साथ-साथ
खुरदरी आँखों को भी भर गई ,
डूबा
गई नमकीन से पानी में
वो
सावन की पहली फुआर !

दिलासा
देता था हर शाम
वो
मेरी तन्हाई का साथी
मीलों
पैदल चलके ,
जाने
कहाँ से
दफअतन , बैठ जाता था
मेरी
खिड़की पर आकर
कई
दिनों से
दिखा
नही हैं वो चाँद
शायद
.........
फिसल
के गिर गया होगा कही
इस गिले मोसम में !

ये मोसम जाने दे
तो
उसे ढूंढ़ कर
टकोर
ही कर आंऊ
पांव
में मोच गई होगी उसके

पर
उफ़ .......
ये
गीला मोसम
!!






(C) शिव कुमार साहिल (C)




गुरुवार, 4 अगस्त 2011

बीमार मोसम

इक अरसे से मोसम
तेज बुखार से पीड़ित हैं
सारा बदन तपतपा रहा हैं उसका
और उसके सेक की वजह से
ग्लेशिअर तक पिघल रहे हैं , खिसक रहे हैं

ये बुखार का ताप और उपर से
जेठ महीने की गर्म हवाएं
ये कारखानों , मोटर वाहनों का
नाजायज गर्म धुँआ
ये मानव बम ये ...ये परमाणु बमों की
आग उगलती मोजुदगी

कई - कई विधवा ओरतों ,
अनगिनत अनाथ बच्चों के
वाष्पीकृत होते हुए गर्म अक्श

ये गर्मी , ये बेरहम गर्मी
ठंडा पानी इक पल में ही उबाल मारने लगता हैं
बर्फ के टुकड़े इक क्षण में ही पिघले जा रहे हैं

ऐसे में भला केसे रखूं
मोसम के माथे पर
ठंडे- ठंडे पानी की
ठंडी-ठंडी पटियां ?


(c) शिव कुमार साहिल (c)